अकेले हैं परेशां हैं मगर तुझको ना भूले हैं ना तू आई राह तकते तेरी सावन के झूले हैं बड़ी कोशिश करी सबने उगल दूँ राज मैं सारे मगर आरोप लोगों के मैंने भी ना क़बूले हैं तुझे एहसास तो होगा मेरी अनमोल उलफत का एक तुझ से कोई भी दाम मैंने ना वसूले हैं बड़ी मुद्दत हुई घर से निकल के तू नहीं आई बड़े वीरान से देखो अब तो नदिया के कूले हैं या तो मौसम बदल दे तू या तो पहलू में बस आजाहर ओर मधुकर बाग़ में द्रुम दल भी फूले हैं शिशिर मधुकर
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उम्दा…….अंतिम शेर के पहले मिसरे को फिर से देख लें…
Dhanyavaad Babbu Ji …..
अति सुंदर
Dhanyavaad Nivatiya Ji ………