हाथ से रेत की मानिंद फिसल जाऊँगा….मौत का हाथ पकड़ चुपके निकल जाऊँगा….तू अगर साथ दे काँटों में भी खिल जाऊँगा…भोर के तारे सा हर राह में जल जाऊंगा…रात ज़ीने पे रुकी होगी अभी पर मैं तो….ख्वाब बन कर तेरी आँखों में फिसल जाऊँगा…ज़िन्दगी कहते रहें वो है तमाशा दो दिन…मैं मगर उम्र तमाम याद में पल जाऊँगा….कर के वादा यूं मुकरना तो न बस में ‘चन्दर’…तू अगर चाहे तो मैं राख में ढल जाऊंगा…\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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bahut hi khubsurat gazel ….. badhai ho.
तहेदिल आभार आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिकिर्या का….Binduji….
behad sundar……
तहेदिल आभार आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिकिर्या का…Madhukarji….
बेहद उम्दा, बेहतरीन, लाज़बाब ………..दिल को छूने वाली पंक्तिया …………..बधाई आपको…… आपकी कलम को …….आपके भावो को
तहेदिल आभार आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिकिर्या का…Nivatiyaji….