ज्यों-ज्यों हौसला टूट रहामन में है गुस्सा फूट रहाहर नाव किनारे डूब रहाहर सपना अपना झूठ रहाअब अपना ही हम पर टूट रहाअपना साया भी हमसे रूठ रहाअब तक जो दोस्तों का गुट रहाउनका भी दामन अब छूट रहाआशा का घड़ा अब सूख रहाजीने का न अब भूख रहाजिस महफ़िल में मेरा रसूख रहाउसके काबिल भी न मुख रहाअंदर ही अंदर अब घूंट रहागम के कुँए में कूद रहाजीने के काबिल दुनिया न रहादिल मरने का बहाना अब ढूंढ़ रहा
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bahut khoob………….
धन्यवाद शर्माजी।
khubsurat
धन्यवाद महोदय।