महबूबा -ऐ-ज़िन्दगी
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तुझे लिख पाना मेरे बस में कहाँ महबूबा -ऐ-ज़िन्दगी तू सागर में घुली स्याही, मैं तिनके सी तैरती कलम !!
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स्वरचित : डी के निवातिया
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Waah……
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी आपका
अति सुंदर वाह…
बहुत बहुत धन्यवाद बिंदु जी आपका
निवातिया जी….माफ़ी चाहता हूँ मुझे स्पष्ट नहीं हुआ है आपका कथन… क्या कहना चाहते हैं… महबूबा-ए-ज़िन्दगी से… मेहबूब की व्यक्तिगत ज़िन्दगी या कुछ और ….
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी आपका ………………यहां “जिंदगी” को “महबूबा” कहा गया है
वाह
बहुत बहुत धन्यवाद जी आपका