राजनीति
किसे फर्क पड़ता हैकौन झूठा कौन सच्चा है,जिसमें स्वार्थ सिद्ध हो जाएवही तो अच्छा है।स्वार्थ ही वर्तमानराजनीति का मानक है,भ्रम है कि ये बदलावअचानक है।ये तो अनुक्रम हैसामाजिक और नैतिक विकारों का,बदलती शिक्षाऔर बदलते संस्कारों का।क्या होना चाहिएइस पर सभी एक मत है, किन्तु कर्म में भिन्न-भिन्नस्वार्थ संलिप्त है।कर्तव्यपरायणता का मिथकसामाजिक और नैतिकसत्य से पृथक, स्वार्थ ही राजनीतिकविकृति का कारण हैव्यक्तिगत स्तर परहर व्यक्ति इसका उदाहरण है।तो क्यों न कुछ बदलने कीउम्मीद से पहलेखुद को बदला जाए, सर्वप्रतिष्ठित सत्य केउसी एक मार्ग पर चला जाएजिसपर सभी एक मत हैं, उन्नति और उल्लास को सहमत है।व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीयप्रगति की सुरम्य प्रतीति है, सही मायनों मेंयही तो “राजनीति” है।
देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत” 20.02.2019
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Behtreen ………..
लाजवाब….और बहुत स्पष्ट विचार हैं आंकलन करते….
सधी हुई कलम से सधे हुए विचार, बहुत लाज़बाब ……………!!