अहीर छंद “प्रदूषण”बढ़ा प्रदूषण जोर।इसका कहीं न छोर।।संकट ये अति घोर।मचा चतुर्दिक शोर।।यह दावानल आग।हम सब पर यह दाग।।जाओ मानव जाग।छोड़ो भागमभाग।।मनुज दनुज सम होय।मर्यादा वह खोय।।स्वारथ का बन भृत्य।करे असुर सम कृत्य।।जंगल करत विनष्ट।सहे जीव-जग कष्ट।।प्राणी सकल कराह।भरते दारुण आह।।यंत्र-धूम्र विकराल।ज्यों यह विषधर व्याल।।जकड़ जगत निज दाढ़।विपदा करे प्रगाढ़।।दूषित वायु व नीर।जंतु समस्त अधीर।।संकट में अब प्राण।उनको कहीं न त्राण।।प्रकृति-संतुलन ध्वस्त।सकल विश्व अब त्रस्त।।अन्धाधुन्ध विकास।आया जरा न रास।।विपद न यह लघु-काय।पर अब जग-समुदाय।।मिलजुल करे उपाय।तब यह टले बलाय।।==============अहीर छंद विधान:-यह 11 मात्रा का छंद है जिसका अंत जगण 121 से होना आवश्यक है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 11 मात्राओं का विन्यास ठीक दोहे के 11 मात्रिक सम चरण जैसा है बस 8वीं मात्रा सदैव लघु रहे। दोहे के सम चरण का कल विभाजन है:8+3(ताल यानि 21)अठकल में 2 चौकल हो सकते हैं। अठकल और चौकल के सभी नियम अनुपालनीय हैं। निम्न संभावनाएँ हो सकती हैं।3,3,1,12, जगण,1,13, जगण,14,2,1,14,3,1******************बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकिया
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
उत्तम सृजन के लिए बधाई स्वीकार करे आदरणीय,………………………..आप जैसे गुणीजनों से सीखने का अपार अवसर मिलता है आपकी कलम यूँ ही चलती रहे ………….हम साहित्यिक सृजन से लाभान्वित होते रहे । धन्यवाद आपका !