छुप-छुप के
***ये जो छुप-छुप के नज़रे मिलाई जा रही है,जरूर कोई नई साज़िश रचाई जा रही है !!ये इश्क का मसला भी सियासत सा लगे है,मिलकर गले प्रेम से गर्दन उड़ाई जा रही है।!करके क़त्ल एतबार, रिश्तों, ज़ज़्बातो का,इश्क-ऐ-वफ़ा की रस्म निभाई जा रही है ।!दिन में जिन्हे नवाज़ा जाता है गालियों से,रात में उन संग महफिले सजाई जा रही है।!अजीब दौर देखा है, अबकी हमने सियासत कादुश्मनो से भी सलामती की दुआ पाई जा रही है।!करके वादा राहो में चाँद तारे बिछाने का,रिश्तो में खटास की बारूद बिछाई जा रही है ।!अब एतबार रहा न महब्बत पे, न सियासत पे,”धर्म” के नाम पर छुरिया जो चलाई जा रही है ।
!स्वरचित : डी के निवातिया
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Bahut khub Sir Kya panktiya hai “ये इश्क का मसला भी सियासत सा लगे है,
मिलकर गले प्रेम से गर्दन उड़ाई जा रही है।” aur “ये इश्क का मसला भी सियासत सा लगे है,
मिलकर गले प्रेम से गर्दन उड़ाई जा रही है।” bahut hi gehri aat kahi hai aapne sado ke adyam se.
ह्रदय से अभिनन्दन एवं आभार आपका ……………..RAJIV JI.