ये नदिया का पानी रुकेगा ना अब तो समुन्दर की जानिब ये मुड़ जो चुका है करे लाख कोशिश ज़माना ये जालिम ना टूटेगा रिश्ता जुड़ जो चुका है वो जब था तुम्हारा ना तुमने सराहा पिंजरे में कैदी बना कर के रक्खा किसी लोभ से वो ना वापस मिलेगापंछी हवाओं में उड़ जो चुका है शीशा कहो चाहे दिल उसको कह लो फितरत है दोनों की बस एक ही सी जुड़ता नहीं है कुछ भी करों तुम ठोकर से तेरी तुड़ जो चुका है मुझे इल्म है अपनी गलती का पूरा मगर अब ना बातों से क़ुछ भी मिलेगा समय लौट कर फिर वो आता नहीं है मिलेगा ना अवसर छुड़ जो चुका है आ के मेरे दिल में क्या ढूंढते हो धड़कन ना कोई तुमको मिलेगी मधुकर का सीना सूना सा घर है लहू सारा इसका निचुड़ जो चुका है शिशिर मधुकर
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वाह….लाजवाब….बेहद उम्दा…. “मधुकर का सीना सूना सा घर है” इसको ऐसे बोल कर देखें कोई फरक लगता क्या…. मधुकर का सीना अब सूना सा घर है…
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Ab se thodi si atkaan aa rahi thi isliye nahin lagaayaa bas.