जंगल के सूखे पत्ते एक कहानी कहते हैं,अब टहनी-टहनी पर कुछ उदास चेहरे रहते हैं…बरखा की राह तक-तक के हैं इनकी आँखें सूख चुकी,अब हरियाली की यादें और बातें भी हैं भूल चुकी..जिन परिंदों ने कभी बसाया था यहाँ पर डेरा,वो लौट-लौट कर करते हैं इन सूखे पेड़ों का फेरा…सूखे से इन पत्तों में, अब भी है थोड़ी सांस कही,मुरझाये से इन पेड़ों में अब भी थोड़ी आस कहीं..शायद इस बरस भी, उस बरस सा मेघा छा जाए..और फिर वर्षा की बूंदों से हमारा आशियाँ हरियाए…जंगल के सूखे पत्ते एक कहानी कहते हैं,अब टहनी-टहनी पर कुछ उदास चेहरे रहते हैं…
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बेहद खूबसूरती से आपने वर्तमान जीवन में प्रस्थितयों वश बिछड़ने का… स्वार्थ परायणता का… चित्रण किया है… यादें…उम्मीद भी बंधाती हैं और तकलीफ भी देती हैं जब आशा पूर्ण नहीं होती….कहीं कहीं अनावश्यक लफ्ज़ हैं…जैसे यादें भी… भी की ज़रुरत नहीं है… मुझे लगता रचना और बेहतर हो सकती है ..एक सुझाव है… पसंद आये तो…
जंगल का हर इक सूख पत्ता अपनी कहानी कहता है.
बृक्षों की टहनियों पे जैसे उदास चहरा लटका रहता है
Dhanyawad sir.
अति सुंदर , ………….जिंदगी की कशमकश को शब्द मोतियों में बांधने का उम्दा कार्य !
Thank you sir