गंगा होगी कब तक मैली,यमुना कब तक तरसेगीकितना रोये दिल बेचाराये आँखे कब तक बरसेगीइससे पहले हद हो बर्बरता कीउठा बन्दूक, दुश्मन पर तान,,,,,,,,,।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
बार बार जो हमसे है हाराफिर उसने हमे ललकारादुश्मन बन बैठा है पड़ोसीजो शह देता वो भी है दोषीयाद नहीं उन्हें शरीअत अपनी
क्यों भूल गए वो आयत-ऐ-कुरआन।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
देश की रक्षा धर्म तुम्हाराबलिदान ही कर्म तुम्हाराजीना मरना इसकी खातिरदुश्मन चाहे कितना शातिरसफल न उसको होने देंगेजाती रहे चाहे अपनी जान,,,,,,,,,,।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
आंच धरा पर न आने देना,शीश हिमालय न झुकने देना,जिस माटी ने जन्म दिया है,सम्मान कभी न घटने देना,नभ से लेकर भूलोक तक,ऊचाँ रहे सदा इसका मान,,,,,,,,,।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
सत्य अहिंसा के हम पुजारी,जानती बात ये दुनिया सारी,घर का दूर,हमारा पडोसी पहले,प्यार में चाहे तो जान भी ले ले,कोई करेगा हमसे झूठे भी बैर,मिटा देंगे उसका नामो निशान।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
बार बार की इस नफरत से,दिल में शोले फ़फ़क उठते है,कैसे प्रेम पनपेगा दिलों में,रोज़ लाल तिरंगे में लिपटे है,जिसको अपना भाई समझा,आज वही बनकर आया काल,,,,,,,,,,।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
इस चमन को पुरखों नेजिगर-ऐ-लहू से सींचा था,प्राण गँवाकर करोडो ने,गोरों के हलक से खींचा थाजाया न कुर्बानी होने देंगेंकितना भी देना पड़े बलिदान ।
मातृभूमि कहती भर हुंकार, उठा शीश और सीना तानचल हो तैयार, वीर जवान, चल हो तैयार, वीर जवान।।
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स्वरचित: डी के निवातिया
अद्भुत वीरता का वर्णन
आपको हृदय से आभार गुरुदेव
बहुत बहुत धन्यवाद आपका अभिषेक
Desh prem se otprot badhiya rachnaa Nivatiya Ji ……………..
आपके अमूल्य वचनो का तहदिल से शुक्रिया एवं कोटिश आभार आपका शिशिर जी !
लाजवाब….. सह की जगह शह होगा क्या देखिएगा….”याद नहीं क्या शरीअत अपनी….भूल गया क्या आयत-ऐ-कुरआन” लिखने का तात्पर्य यहां मुझे समझ नहीं आया….मान्यवर….
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी आपका कथन यथोचित है ,,,,,,,,,,,,,,मैंने ‘सह’ लिखा था सहयोग देने के अर्थ में, ‘शह’ का अर्थ होता है किसी को बढ़ावा देना, पते की बात ये है की इस संदर्भ में दोनों ही बात यहां बराबर का महत्व रखती है, दोनों का बराबर योगदान है इसलिए दोनों उचित है, लेकिन आपके सुझाव अनुरूप “शह” रख दिया है मुझे भी लगा की यह ज्यादा सटीक रहेगा !
”याद नहीं क्या शरीअत अपनी…भूल गया क्या आयत-ऐ-कुरआन” लिखने का तात्पर्य ये सैनिको के संदर्भ में नहीं बल्कि दुश्मन के परिपेक्ष्य में लिखी गयी है, इसमें थोड़ा सुधार करके ऐसे कर रहा हूँ ,,,,,,,,,,”याद नहीं उन्हें शरीअत अपनी…क्यों भूल गए वो आयत-ऐ-कुरआन”,,,,,,,,,,,,,शायद समझने में अब ज्यादा आसानी हो,
आपके अमूल्य वचनो का तहदिल से शुक्रिया एवं सुझावात्मक प्रतिक्रिया के लिए सदैव प्रतीक्षारत, पुनश्चय: धन्यवाद आपका ।