बस जिंदगी में इतना मुकाम चाहता हूं।जो काम आए सबके वो काम चाहता हूं।अपने लिए तो जीते हैं सब इस जमीं पे औरोकेलिए अपना सुबेह शाम चाहता हूं।बस जिंदगी में इतना मुकाम चाहता हूं।बढ़े मेरा वतन हो खुशहाली चारो ओर।होगी मुझे खुशी जो कर पाऊ मै सहयोगअपने लिए थोड़ी इज्जत सम्मान चाहता हूं।बस जिंदगी में इतना मुकाम चाहता हूं ।धन दौलत से करना है क्या भला मुझे।सकूं की दौलत मरते भी दाम रहे चरित्र का में दामन बेदाग चाहता हूंबस जिंदगी में इतना मुकाम चाहता हूं।जब आखरी सफर हो मुस्कान लब पे होगांव की हो मिट्टी , हुजूम संग हो मर कर भी नेकियों का बखान चाहता हूं।बस जिंदगी में इतना मुकाम चाहता हूं।
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बहुत ही सुंदर……सबेह…को सुबह…’हजुम’ को देखिये…हम लिखना चाहते या कि हुजूम….
Thank you sir .
सुन्दर रचना।
Thank you Vijay ji
Ati sundar……
bahhut jee thik kahateyn hain bahut sunder