प्रेम उस से करें कैसे मान जिसने घटाया होएक गुणगान गैरों का मेरे आगे सुनाया होखड़ा है तन के मेरे सामने वो गैर के जैसाघमंडी सर कभी चाहत में जो उसने झुकाया होमिटेंगे तम सभी मन के ज़रूरत है फ़कत इतनीदीप एक प्रेम का साथी ने जो हरदम जलाया होअलि गुंजेंगे उस बगिया में तुम भी देख लो जग में जहाँ मालन ने महके फूलों को जमकर खिलाया होतन के मिलने से ना मधुकर कोई खूं में समाता हैवही नस नस में बसता है दिल जिसने मिलाया होशिशिर मधुकर
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अतिसुन्दर रचना।
Shukriya Vijay ….
बहुत सुन्दर पर भाव अटक रहे मुझे कहीं कहीं…. जैसे….”एक गुणगान गैरों का सदा गा के सुनाया हो” … इसको ऐसे भी सोच कर देखें….कैसे है….
प्रेम उस से करें कैसे जिसने मान घटाया हो
गैरों का गुणगान जिसने सामने ही गाया हो
“ये सर कभी चाहत में जो उसने झुकाया हो”….ये डिलीट करना अच्छा है…देखिएगा….
तहे दिल से शुक्रिया बब्बू जी। आपके वक्तव्य के सन्दर्भ में मैंने आवश्यक परिवर्तन किए हैं कृपया अब बताएं कैसा लग रहा है.