अरमान टूटते हैं जब उल्फ़त की राह मेंदिल में मिलेगा दर्द एक ऐसी ही चाह मेंनज़रों से मैंने आज भी उसको किया दुलारलेकिन दिखी ना तिश्नगी कोई निगाह मेंमायूस हूँ कि फिर से मैं तन्हा ही रह गयासूझे ना मैं जाऊँ कहाँ किसकी पनाह में माना सजा से खुद को तुमने बचा लियापर साथ में थे तुम मेरे हर इक गुनाह मेंमुझको रुलाने वाले को कैसे मिलेगा चैनबेचैनियों की आग है मधुकर की आह में शिशिर मधुकर
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
वाह…वाह….मजा आ गया लय और शब्दों के तालमेल का….बेहद उम्दा….पता नहीं यहां आ के अटका मैं लय और विचार में….”मनवा” के संग… आप दो मक्ते भी रख सकते हैं… मनवा की जगह मधुकर रख के…. और दो मकता नहीं रखना चाहते तो अब जो मकता है उसकी अंतिम पंक्ति कुछ ऐसे भी सोच सकते हैं…थे तुम भी साथ मेरे हर इक गुनाह में… अगर पसंद आये तो…
बब्बू जी आपका सुझाव मान कर मैंने मक्तों में आवश्यक बदलाव किए हैं आशा है अब आपका समर्थन मिलेगा. धन्यवाद
वाह बहुत खूब शिशिर जी,
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji…….