नाजो नखरे सहकर तेरातुझको पाला हूँ मैं लाडोसब नखरे तू छोड़ यहाँअपने ससुराल तू जाना लाडोबहना भइया पापा मईयातुझको याद करेंगे लाडोभूल जाना तू अपनों कोग़ैरों को अपनाना लाडोखुश रखना तू सइयाँ कोअपना दुःख मत बतलाना लाडोभारी पत्थर रखकर दिल परतुझको विदा करूँगा लाडोविदा वक़्त रो लेना तुमजितना जी चाहे तू लाडोचेहरे पर सदा हँसी तू रखनाजब ससुराल में रहना लाडो
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Bhaavnaatmak ……
शुक्रिया।
भावों से भरी रचना……”भूल जाना तू अपनों को”…. मैं इसके हक़ में नहीं हूँ….इसकी जगह आप यह सोच कर देखें की क्या माता पिता…भाई बहन भी भूल जाएं जो बेटी घर से विदा हो गयी…. कोई नहीं भूल सकता… हाँ कर्तव्य निर्वहन अपना अपना ज़रूर होना चाहिए….सामंजस्य के संग….आशा है बुरा नहीं मानेंगे….
आपकी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद……यहाँ पर भूल जाना तू अपनों को का भाव यह नहीं क़ि पूरी तरह अपनों को भूल जाये बल्कि यह है कि अपनों को हर वक़्त याद न कर अपने ससुराल में रच बस जाये।और यह भाव एक पिता/माता की है जो जो अपनी बेटी से विदाई वक़्त करता है।उम्मीद है मेरे भाव को समझेंगे।आगे भी आपकी प्रतिक्रिया का मुझे इंतज़ार रहेगा ,धन्यवाद।