पहले जैसा अब कुछ भी नहींतुम भी नहीं और मैं भी नहींतारों वाली रात तो हैपर तुम्हारे साथ बैठूँ ऐसी कोई छत ही नहींतेरे बिना पैरों के नीचे से खिसकी है जमींना सूरज बचा कोई ना आसमां है कोईशायद अब पहले जैसा कुछ भी नहींराते गहरी काली अब कटती ही नहींमयखाने जा कर भी कोई नशा चढ़ता ही नहींअब कोई भी रंगमेरी ज़िंदगी मे रंग भरता ही नहींयादें कचोटती है तुम्हारीनींदे आँखों मे ठहरती ही नहींसाँसे तो चल रही अभी भीपर तुम्हारे बिना मैं ज़िंदा ही नहीं-अभिषेक राजहंस
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