गुल कमल के तू कहाँ कीचड़ में खिल गया तेरे हुस्न का रुआब सब मिट्टी में मिल गयाकपड़ा वो बड़ा कीमती अनजान को मिलादेखो लिबास सारा ये उल्टा ही सिल गयामिट्टी नरम थी बाग की जहाँ बीज बो दियातूफां चला तो पेड़ देखो जड़ से हिल गयाहाथों में हाथ पकड़ा ना उसने सहूर सेथोड़ी सी खींच तान में ये सारा छिल गया ताजा हवा जीने की जो मधुकर नहीं मिलेऐसी जगह इंसान का बैठा है दिल गया शिशिर मधुकर
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वाह वाह…. क्या बात है सर।
Tahe dil se shukriya ……………
bahut hi badhiyaa…………..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……………….