कुछ भूली बिसरी यादों को चलो फ़िर से ताज़ा कर लें चलो आज फ़िर से मिल कर बागो में झूला झूल लें अपने बचपन को आज फ़िर से मिल कर जी लें ,पता नहीं कल फ़िर तुम से मिल पायेगे की नहीं,आज तो हम मिल सारे जहान की खुशियाँ समेट लें ।भावना कुमारी
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आपका विचार सराहनीय है।बेपरवाह किये जो चल निकले है अपने अग्निपथ पर,मंजिल खुद आपके कदम चूमेगी।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
बहुत खूबसूरत…. अपनी बचपन को अपने कर लें और पंक्ति के अंत में ‘ले’ की जगह ‘लें’ आएगा….
बहुत बहुत धन्यवाद सर ।
बहुत उम्दा जी,
बहुत बहुत धन्यवाद सर