लौ लगी कृष्णा तेरी मन में…सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में…मन पथिक हर राह निहारे…कान्हा आएंगे कौन से द्वारे…आँख न मीचे मन व्याकुल ये…अब आएंगे प्राण प्यारे….देखूं आतुर हर इक जन में….देखूं आतुर हर इक जन में….लौ लगी कृष्णा तेरी मन मेंकारी बदरिया घिर है आयी…उम्र गगरिया भी भर आयी…नैनाँ पुकारें सांसें निहारें…कब आओगे प्रीतम प्यारे…डूबी जाऊं मैं हर क्षण में….डूबी जाऊं मैं हर क्षण में….लौ लगी कृष्णा तेरी मन में’चन्दर’ जग न भाये मन को….न चाहे अब ये इस तन को….चाह इसे रम जाऊं तुझ में…तेरी लौ हूँ थम जाऊं तुझ में…संग तेरे विचरूँ कण कण में…संग तेरे विचरूँ कण कण में…लौ लगी कृष्णा तेरी मन में….सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में…\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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Behad sundar or bhaktimay rachnaa Babbu ji …
तहदिल आभार आपका…Madhukarji…..
अत्यंत मन मोहक ,,,,,,,कर्णप्रिय,,,,,गीत रचना Babbu ji …
तहदिल आभार आपका…Nivatiyaji….
बहुत ही सुन्दर रचना सर
तहदिल आभार आपका….Bhawanaji….
बहुत सुन्दर।
तहदिल आभार आपका…Vijayji….
आपकी रचना में कमैंट्स नहीं जा रहे….एरर आ रहा है…. मैं यहां दे रहा हूँ… कृपया
बहुत सुन्दर….. कहीं कहीं वर्तनी दोष है उसे सही कर लें आदरणीय….’पता चले नही कौन किस मजहब” इसको ऐसे सोच के देखें लय में क्या अंतर है….’पता न चले किसी के मजहब का’ …’मन का मिलन..’ मन के मिलन होगा…..रंग गुलाल की है ये होली… में रंग गुलाल को प्रेम गुलाल की है होली सोच के देखें…
आपका सुझाव स्वागत योग्य है,आपसे इसी तरह मार्गदर्शन मिलता रहे ताकि मैं अपनी लेखनी को बेहतर कर सकूँ।
Ati sunder bahut hi pyari geet badhai ho babbu jee.