खुद जो थी बेवफा
वफ़ा का इम्तिहान लिया
हया के नाम पर
हया का कत्लेआम किया
एहसास की पनाहों में
एहसासों को घोंट दिया
थी वो बेकद्र
कद्रदान का बुरा हाल किया
बेज़ार की रानी ने
चाहत का रंक बना दिया
बन बेग़ैरत उसने
गैर का दामन थाम लिया
मुहब्बत की दे दुहाई
सरेआम मुहब्बत को नीलाम किया
संगदिल हसीना ने
मेरे दिल से खिलवाड़ किया
बेदिल थी वो इतनी कि
खंजर दिल में मेरे घोंप दिया
बंजर आँखोंवाली ने मुझको
बारिश में रोता छोड़ दिया
बेहद खूबसूरत ,,,,,,,,,,,,,,,!
धन्यवाद।
अति सुन्दर
धन्यवाद।
achaha likhaa hai…
धन्यवाद sir