दर्द सीने में उठता है कोई फिर याद करता हैछवि मन में लिए बस यार की आहें सी भरता हैभले तू पास आकर के कभी मुँह से नहीं बोलेमुहब्बत का हसीं जज्बा तेरी आँखों से झरता हैबड़ी जिद से भरी फितरत खुदा ने बख्शी है इसको कभी भी मारने से प्यार दिल में थोड़ी मरता हैकिसी ने प्यार के तुझको कभी काबिल नहीं समझाबिठाया मैंने पलकों पे तो अब खोने से डरता है प्रेम के नूर की क्या पूछते ही तुम यहाँ मधुकरदिशाओं में दसों सदियों से ये यूँ ही बिखरता हैशिशिर मधुकर
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वाह उम्दा…लय भी उम्दा…. एक शेर देखिये अपना इसमें बहुत क्लासिक आईडिया छुपा है…
बड़ी जिद से भरी फितरत खुदा ने बख्शी है इसको
कभी भी मारने से प्यार दिल में थोड़ी मरता है
बड़ी जिद से भरी फितरत खुदा ने बख्शी है दिल को
करूँ कोशिश मैं कितनी भी मगर न प्यार मरता है
Dhanyavaad Babbu Ji. Aapkaa sujhaav bhi bahut badhiya hai ….
बहुत खूबसूरत शिशिर जी,,,,,,,,,,,,,,,,,!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji …………..
बहुत ही खुबसूरत रचना सर
Shukriya Bhavna Ji……