वक़्त -बेवक़्त कुछ भी लिख दिया करता हूँकभी अपने जख्म तोकभी मरहम लिख दिया करता हूँकभी मन की आशा तो कभी कुंठा लिख दिया करता हूँकभी प्रेम का प्याला तो कभी विरह का जहर पी लिया करता हूँकभी टूटती बैसाखी तोकभी मोतियाबिंद वाली आंखे देख लिया करता हूँजज्बातों के बाजार मेंखुद को खरीद-बेच दिया करता हूँमैं अक्सर भीड़ में खुद कोअकेला कर लिया करता हूँज़िन्दगी की उलझने लिखते -लिखतेअक्सर मय्यत के इंतज़ार का जिक्र कर दिया करता हूँवक़्त-बेवक़्त कुछ भीलिख दिया करता हूँ–अभिषेक राजहंस
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Dard bhari rachnaa Abhishek……
Thanks sir
ati sundar…….
बहुत अच्छे अभिषेक !