मन की हर बात करने का मेरा मन तुझसे करता हैतेरे हर लफ्ज का मरहम मेरी पीड़ा को हरता हैमेरी झोली किसी के प्यार से महरूम थी अब तकतू दोनों हाथों से इसको सदा हँस हँस के भरता हैतू मेरे साथ है जब से मुझ को चिंता नहीं रहतीतन्हा इंसान ही बस हर समय गैरों से डरता हैअलग इंसान होते हैं फ़कत कातिल ज़माने मेंये जज्बा प्यार का आसानी से थोड़े ही मरता हैमुहब्बत ना मिले गर इंसा ये मधुकर टूट जाएगागमों की आग से जग में कोई फिर ना उबरता है शिशिर मधुकर
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bahut badhiya…..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……………….
Kya likhte hai aap Sir “मन की हर बात करने का मेरा मन तुझसे करता है
तेरे हर लफ्ज का मरहम मेरी पीड़ा को हरता है” bahut hi sunder panktiya hai.
Tahe dil se shukriya Rajiv Ji…….