मेज़ पर पड़ी कलम पुकारती है तुझे,खींचती है तुझे भावों की डोरी से..सुनाती है कभी आधी, कभी पूरी कहानी,तेरे लफ़्ज़ों को गाती है अपनी ज़ुबानी..मेज़ पर पड़ी कलम पुकारती है तुझे…कहती है..तुम मेरे पैर बनो, मैं तुम्हारे हाथ..कभी तुम दो मुझे सहारा, कभी मैं दूँ तुम्हारा साथ..गर शब्दों के बीच उलझोगे तो सुलझा लूंगी मैं,पर जज़्बातों में बहोगे तो बहने दूँगी मैं…मेज़ पर पड़ी कलम पुकारती है तुझे…स्याही-स्याही पिरोती है शब्दों की माला,तेरे मन की चिंगारी को बनाती है ज्वाला..है चाक़ू सी तेज़ी और तलवारों सी धार,साधारण डील-डौल, पर असाधारण वारमुश्किल है ये कहना कि कौन किसका साथी है..कलम ही तेरा अर्जुन, तेरा कृष्ण, तेरा सारथी है..मेज़ पर पड़ी कलम पुकारती है तुझे…
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बहुत बढ़िया आदरणीया ….”शब्दों की डोरी “…. मुझे लगता भावों की डोरी ज्यादा सही है… भाव होंगे तो शब्द निकलेंगे…रचना में भाव और बेहतर हो सकते हैं…
Dhanyawaad sir. Badhiya sujhaav
अति सुंदर सृजन !
Thank you sir
Neat allegory with the personification of the pen and relating it to lord Krishna and Arjun. Impressed! Sorry I am not commenting in hindi. ..sometimes the thoughts flow faster in English ..but then what is in a language. ..a thought in any language is defined by its content and inner jazbaat!!
Many thanks for such encouraging words