शब्दों के आँचल में भाव छुपा डाले…उनको हो न खबर तो ज़ख्म सिला डाले…कलम उठा कर अपनी उनको दे डाली…जीवन के सब अपने राग मिटा डाले….मेरी ग़ज़लें पढ़ कर उनको वह्म हुआ…तोड़ कलम, मेरा वो हाथ दबा डाले….दहशतगर्द-सियासत सब मतलब खातिर…कलम, सिपाही, गर्दन हाथ कटा डाले…सत्य ‘चँदर’ कटु है पर यह होता आया…जिन हाथों में लाठी भैंस चुरा डाले…खिलौने सी है ज़िन्दगी ये हमारी…बने पल में टूटे क़ज़ा की सवारी…जभी बालपन कूद खेले गँवाया…खिलौना बना इश्क़ चढ़ती खुमारी…खपाया गृहस्थ आश्रम जां जिगर को…खिलौना गए तोड़ घर के खिलारी…रहे जब अकेले जहां के समंदर…न पूछो हुई जो फ़ज़ीहत करारी…अगर हाथ इक तोड़े दूजा न जोड़े…खिलौने के जैसी है किस्मत हमारी…खुदा तुम अगर है बनाई ये दुनिया…नचा क्यूँ रहे सबको गुंडे मदारी…कभी खेलना अर न दिल तोड़ना तुम…अगर आज ‘चन्दर’ तो कल तेरी बारी…\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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एक ग़ज़ल और एक रचना
दोनों मिलकर एक संरचना।
बहुत खूब बब्बू जी
तहदिल आभार आपका……Binduji…..
Ati sundar Babbu Ji…..
तहदिल आभार आपका…Madhukrji….
अति उत्तम सृजन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत बब्बू जी
तहदिल आभार आपका….Nivaatiyaji….