बस तड़प तड़प में ही ये ज़िंदगी गुज़र गईदेने का वादा करा किस्मत मगर मुकर गईएक नशे में रह रहा था मैं तो पाल के स्वप्न असलियत से पर मेरी सारी चढ़ी उतर गईकोशिशें कितनी करीं हार तो ना बन सकामोतियों की माल हरदम टूट के बिखर गईज़िन्दगी की शाम में अब उम्मीदें क्या करेंकलियाँ खिलाती जो यहाँ दूर वो सहर गईदूरियां इस धरा और चाँद में जबसे बढींऊँची लहर मधुकर कहीं समुन्द्र में ठहर गईशिशिर मधुकर
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अति सुंदर ………………….!
Shukriya Nivatiya Ji ……..