निभाना ही नहीं तुमको तो क्यों रिश्ता बनाते होइतने नज़दीक आ कर के कहो क्यों दूर जाते हो ज़माने से डरे हो तुम हर इक शमा बुझा डालीअँधेरों में तन्हा कर के मुझे हर पल सताते होएक तेरा साथ क्या छूटा मैं तो ग़मगीन बैठा हूँकुछ अपनी कहो दिन रात तुम कैसे बिताते होतुम्हें मालूम तो होगा अलहदा कर नहीं सकतेकिसी की सांस में जब भी तुम घुल के समाते होमुझे तेरी जुदाई ने तो मधुकर तोड़ ही डालाहिज्र के बोझ को तुम भी कहो कैसे उठाते हो शिशिर मधुकर
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Dhanyavaad Babbu Ji ………………