ख़फा
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वो शख्स मुझसे इतना ख़फा क्यों हैबेवफाई में ढूंढता वो वफ़ा क्यों है !!
कभी चाहत, कभी नफरत-ऐ-अदामिज़ाज़ उनका दो-तरफा क्यों है !!
इक – दो बार होता तो हम मान लेतेमगर सलूक ऐसा कई मर्तबा क्यों है !!
जरूर कोई तो बात रही होगी मुझमेंवरना मेरे संग उनकी अब्ना क्यों है !!
अगर मुहब्बत पे सनम को रहा एतबार हैफिर “धर्म” के साथ चला ये गंजीफा क्यों है !!
!!!डी के निवातिया
!
बिन बहर की नज़्मकाफिया – आरदीफ़ – क्यों है!
अब्ना= सन्धि,सहमति,गंजीफा = ताश की तरह का एक खेल जिसमें पत्ते गोल होते हैं और संख्या में 96 रहते हैं।
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समृद्ध शब्द कोश है आपका
आपके शब्द और आपकी लेखनी को नमन
तहदिल से शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार आपका अभिषेक !!
आपकी साहित्य साधना को नमन। सुंदर रचना।
तहदिल से शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार आपका देवेंद्र प्रताप जी !!
Bahut khoob Nivatiya Ji …………..
तहदिल से शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार आपका शिशिर जी !!
बहुत खूबसूरत…..मतले में “फ़ा” काफिया लिया है आपने आदरणीय…. गंजीफा खेलने के लिए कम से कम ३ व्यक्ति चाहिये…. मक्ते में २ हैं जिस तरह आप लिख रहे या जो मुझे जो समझ आ रहा…
बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय………… बड़ा अच्छा लगता है आपकी प्रतिक्रिया पाकर हमे सदैव इंतज़ार रहता है, सभी खेलों के अपने नियम कायदे होते है लेकिन वो प्रतियोगिता के लिए होते है ….लेकिन जब हम स्वयं के लिए खेल रहे होते है, उसमे व्यक्तियों की संख्या पर कोई पाबंदी नहीं होती…..वैसे भी यहां खेल हकीकत में नहीं खेला जा रहा मात्र उसकी उपमा दी जा रही है !
तहदिल से शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार आपका बब्बू जी !!
आदरणीय….क्षमा चाहता हूँ आपकी बात से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ मैं…सही है वास्तिवक खेल नहीं है…. पर आपका मकता तो ‘खेल’ की ही बात कर रहा है…. और उपमा जब खेल की है तो वो भी उसी तर्क की स्थापित करती होनी चाहिये….. हाँ अतिश्योक्ति रस जो अलंकृत रचनाएं हैं उनमें हम कैसी भी उपमा दें वो चल सकती है जो मैं समझता हूँ…
आदरणीय बब्बू जी, धन्यवाद आपका इतनी गहनता से नज़र करने के लिए, आपकी भावनाओ की कद्र करता हूँ, लेकिन यह भावो की अभिव्यक्ति मात्र है इसमें हमे ह्रदय के भावो का सम्प्रेषण के अनुरूप कार्य किया जाता है, वास्तविक खेल से तुलनात्मक अध्ययन करना अभिप्राय नहीं होता, वास्तविक खेल का इससे कोई लेन-देन नहीं होता है, अनेक बार हम ऐसी कहावतें या लोकोक्तियाँ का प्रयोग करते है यदि उनका सीधा अर्थ निकला जाए तो सटीक नहीं लगता। बाकी प्रत्येक पाठकगण को पूर्ण अधिकार होता है सहमत या असहमति जताने का मै ह्रदय इसके लिए आभारी हूँ और आशा करता हूँ मुझे यह सुधारात्मक अपनत्व प्रेम सदैव मिलता रहेगा !
पुन:श्चय आभार आपका !!
बहुत खूब निवतिया जी क्या कहने
तहदिल से शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार आपका BINDU JI.
बहुत खूब !!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सारांश !