शायर बनाया आपनेनादान अनाडी को प्रेम का पाठ पढाया आपनेअपने रिश्ते को भी अनाम रिश्ता बताया आपनेअंधियारे दिल में जलाकर प्रेम की अगनअचानक ही दिया प्यार का बुझाया आपने कभी प्यार भरा गीत भी गाया आपनेतनहा दिल में दीपक प्यार का जलाया आपनेजमाने का डर है या यह बेरूखी आपकीयूं राह दिखाकर भी रास्ता भुलाया आपने मोहब्बत की राह पर चलना सिखाया आपनेदिल में चराग-ए-इश्क को जलना सिखाया आपनेसब जानकर भी रहते हो बेखबर इस तरहइस दिल-ए-नादान को यूं ही रूलाया आपने यूं बिना बोले भी मन ही मन समझाया आपनेअपने मौन से ही अनकही कथा को कहलाया आपनेइस दीन दुनियां से निराली है दुनियां आपकीजग में रहकर जग को ही भुलाया आपने प्रेमपथ के पथिक को यह पथ दिखाया आपनेइस संकरी प्रेमगली को अग्निपथ बताया आपनेपग पग पर इम्तिहान लेती है जिन्दगीहर परीक्षा से पार पाना सिखाया आपने मंद-मंद मुस्कान से यूं भरमाया आपनेकलेजे पर नश्तर चले जब शरमाया आपनेयूं नजरें उठाना और उठाकर झुकानाइन्ही अदाओं से तो दिल चुराया आपने कभी मुंह से खुलकर नहीं बोला आपनेराज-ए-दिल को कभी नहीं खोला आपनेहम तो लुटाते रहे अल्फाज का खजानाजब जब भी हमारा मन टटोला आपने लगता है अपने जज्बातों को दबाया आपनेयूं अपनों से ही अपनापन छुपाया आपनेनहीं बयां करते आप अपनी भावनाएंखुद का राजदार खुद ही को बनाया आपने तन मन वचन में सौन्दर्य पाया आपनेअपनी खुशबु से गुलशन महकाया आपनेआप हो मेरे मन की अनुपम अद्भुत देवीअपने मन को ही मन्दिर बनाया आपने प्यारी कही अनकही बातों से बहलाया आपनेपुराने जख्मों पर जैसे मरहम लगाया आपनेयूं ही खाली पडा था दिल का आशियानाबसकर इसमें चार चांद लगाया आपने मेरे मन की कल्पनाओं को मोड दिया आपनेफिर बीच मझधार में लाकर छोड दिया आपनेआपको शायद नहीं है, मुझे तो आपसे हैइस ‘प्यार’ को सदा ही काव्य समझा आपने गुलाब खुद बने तो मुझे भंवरा बनाया आपनेरूप रंग मकरंद से बेहद भरमाया आपनेशब्द भ्रम में पडे कवि को पूछता कौन हैझट से उपवन छोड चले बहुत सताया आपने मेरी प्रेरणा बनकर काव्य को परवान चढाया आपनेहर एक रचना पर यूं उत्साह बढाया आपनेमेरी हिन्दी में हुआ उर्दू का दाखिला इस तरहपहले तो मैं कवि था शायर बनाया आपने –रामगोपाल सांखला ‘गोपी’
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हिन्दी साहित्य के सभी फनकारों को सादर नमस्कार। अपने कार्य की व्यस्तता के कारण कुछ अन्तराल तक hindisahitya.org मंच से दूर रहा हूं। अब आप सब से इस मंच के माध्यम से रूबरू हो रहा हूं। मैंनें आज तक छोटी मोटी तुकबन्दी करके कविताएं लिखी है। आदरणीय रचनाकारों की तरह गीत, गजल, शेर, शायरी में मैंनें लेखन नहीं किया है। उर्दू भाषा का ज्याादा ज्ञान नहीं होने पर भी इस प्रकार की रचना करने की हिमाकत कर रहा हूं। आप सभी स्नेैहीजनों के सुझाव मिलेंगे तो मैं अपनी लेखनी को और परिष्कृत कर सकूंगा।
सदैव आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में
आपका स्नेतही
रामगोपाल सांखला ‘गोपी’
आदरणीय को सादर प्रणाम।अच्छी भावपूर्ण रचना।
बहुत बहुत आभार श्रीमान।
बहुत बहुत आभार सर।
bahut khubsurat … lambi rachna se parhez karen,.
सर कई दिनों का गुब्बार एक साथ निकला है
अच्छा चित्रण किया आपने ………..!
बहुत बहुत आभार सर