मुझको दिखा ओ रहगुजर, तेरे अन्दर हरा क्या हैतू मुश्किलों में भी खड़ा, तेरे अन्दर भरा क्या है
तुमसे बिछड़ के भी अभी तक, जो हम प्यार करते हैमुझको बताओ फिर कि इन, दुआओं से बड़ा क्या है
जड़ के जमाने मे कभी, कि जिसको जीत कहता हैतू ही बता मुझको कि अभी, मुझसे लड़ा क्या है
ये जो हमारी हार के, ढिढोरें खूब पीटे हैइससे उभरने का बता, कि अब वो मशवरा क्या है
ये जो पकड़ के बेफिजूल, सभी को ज्ञान देता हैमुझको बता तूने कभी, खुद को पढ़ा क्या है
चालाक नजरें, हाथ भी कड़क, पावँ दबे हूयेहमको बता भी दो कि अब, तुम्हारा मोहरा क्या है
माना कि दिल में आपके , ये सच ईमान बसता हैफिर ये बताओ दिल सतह पर, आपके खुरदरा क्या है
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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sundr……………..
बहुत बहुत आभार आपका
ये जो हमारी हार के, ढिढोरें खूब पीटे है
इससे उभरने का बता, कि अब वो मशवरा क्या है
Bahut Sunder Line
बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..
Nice line
बहुत सुंदर मनु जी
धन्यवाफ devendra जी …
धन्यवाद devendra जी