1कौन यहाँ कब तक जिंदा हैहर कोई बस पिंजड़े में बंद परिंदा हैकोई स्वप्न के धागे में उलझ करज़िन्दगी को सीलने चला हैकोई अपनो के सिर पर पैर रख करखुद को आगे बढ़ाने चला हैबहुत प्रतिस्पर्धा है भाई साहबखुशियां किसे रास नहीं आती तभी तो इन्हें बेचने-ख़रीदने का सिलसिला चल पड़ा हैधरम-जात के नाम पर हर कोई जीतने चला हैइंसानियत को हिमशीतक में छोड़ करलहू को इंसान पीने चला है 2इनकी आत्माओं पर इनका अधिकार कहाँये दारू की बोतल पर बिकने वाली जनता हैजो गूंगी भी हैं और बहरी भी हैंजीतता भले ही कोई हो चुनावी मौसम मेंपर हारते यही हैंक्योंकि ये धर्म के नाम पर लड़ते हैये जाति के नाम पर बँटते हैये शक्तिहीन शक्तिमान हैया अपनी शक्ति को भूले हनुमान हैइनकी गरीबी और लाचारी जायज हैक्योकि अगर ये खत्म हो जाएगीतो ये पिंजड़े से उड़ जायेंगेइनका पिंजड़े में रहना ही अच्छा है —अभिषेक राजहंस
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
अॉखे खुल गयी साहब
Hahahaha
अब से खुली रखियेगा
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
बहुत अच्छी कविता है, दिल को छु गई…….
धन्यवाद गोपाल जी
कटु सत्य को चरितार्थ करती….
जी कोशिश तो की है
कौन यहाँ कब तक जिंदा है
हर कोई बस पिंजड़े में बंद परिंदा है
Really
आपको नहीं लगता गोपाल जी
बहुत खूबसूरत ………!
आपके वचन मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते हैं