जब भी बढ़ते ये हाथ कहींकुछ नया काम कर जाने कोजब भी बढ़ते ये पाँव अभागेएक नयी राह पर जाने को- – – – -पर जाने किस भाव मे डूबेये हाथ पाँव रुक जाते हैवही पुरानी तड़पन वालीयादों की ओर झुक जाते है- – – – -क्या जिंदगी ये मौत वालीतुम्हे भी कभी रोकती होगीइस दुनिया से फिर उदासीन होक्या तुम भी मुझे सोचती होगी- – – – -जब अगणित लोगों के बीचखुद को मैं अकेला पाता हूँसब हँसते है, मैं चुप रहकरइक तन्हा सा मेला पाता हूँ- – – – -खामोश देख मुझको उस पलजब लोग मुझे हिलाते हैतुम्हारी यादों से बाहर लाकरअसल दुनिया से मिलाते है- – – – -क्या ऐसे पल के मिलने परबीती यादें ओढ़ती होगीइस दुनिया से फिर उदासीन होक्या तुम भी मुझे सोचती होगी- – – – -अब तो जीवन में अपनेढंग के न कोई रंग बचे हैये प्यार भरे आँसू वालेनजारे ही अब संग बचे है- – – – -हर पल तुम से दूर रहकरपल पल तुमको पाता रहता हूँतुमको खुद के भीतर रख केदूर तुमसे जाता रहता हूँ- – – – -पीर, उदासी से भरी हुईयादों को नोचता रहता हूँआंखों में इक समंदर लिएतुम्हे ही मैं सोचता रहता हूँ
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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