हम दरिद्र पर रहम कैसा हैमन में सबका वहम पैसा है।ना साथ जायेगा न रहेगाआदमी का करम पैसा है।धन – दौलत है केवल नाम कामाया – जाल ये भरम पैसा है।बेच तक देते अपनी जमीरइतना यहाँ ये खतम पैसा है।रिश्ते – नाते भूल सब जातेइतना अब बे -शरम पैसा है।भूल जाते औकात अपनीउनके लिये कशम पैसा है।गरीब बेचारा बिन्दु का क्याजितनी आता हजम पैसा है।
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सत्य वचन बिंदु जी …
कृपया मेरी रचना “बच्चों का हक” पँर भी अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया करें ….
khoobsoorat………..