यहाँ जिस चीज़ को चाहो, वही ना पास आती है ज़िन्दगी खेल में अपने, फ़कत सबको नचाती हैजो अपने पास होता है, कदर उसकी नहीं होती दूसरे की सफलता जाने क्यों, सबको लुभाती हैखिलाए गैरों के गुलशन, फक्र इसका मुझे हैं पर अपनी उजड़ी हुईं बगिया देखो, मुझको रूलाती हैकभी थी रोशनी जिससे, शमा वो अब नहीं दिखतीएक लपट आग की बस, मेरे इस घर को जलाती हैमेरे इस दिल के सागर में, ज्वार तो अब भी आते हैं मगर मधुकर की खुद की बेबसी, उसको दबाती हैशिशिर मधुकर
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हकीकत बयान करती अच्छी अभिव्यक्ति
Shukriya Bindu Ji ……..
बेहद खूबसूरत…..खिलाये को खिला दिए सोच कर देखें….
Tahe dil se shukriyaa Babbu Ji. Aapkaa sujhaav bhi uttam hai.