नज़रें नज़रें उनकी ढूंढे हमें चलो ऐसा कोई काम करें दिल उनका चुरा के उनकोथोड़ा सा परेशान करेंसर्वजीत सिंह [email protected]
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वाह क्या कहने बहुत खूब।
बहुत बहुत धन्यवाद् …………………………………… बिंदु जी !
Bahut khoob …….
बहुत बहुत धन्यवाद ………………………………………………………… मधुकर जी !
सर्वजीत सिंह जी ख्याल अच्छा है पर तुक नहीं मिल रहा है ,
बहुत बहुत धन्यवाद …………………………… रज़ा साहब, शायरी में तुक मिलाने की जरूरत नहीं होती, समझने की जरूरत होती है !
ये देखिये जिगर मुरादाबादी साहब का एक बेहतरीन शेर ……………
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
परेशान करने की भी ये आपकी अदा
दुनिया में लगती है सबसे जुदा जुदा।।
तहे दिल से शुक्रिया ज़नाब …………………. आपका अंदाज़ भी निराला है !
आप का तरीका सही है…. जो परेशान करता उसको परेशान करो…. और हसीं अंदाज़ हो तो क्या कहने…. सर्वजीत जी…. आपकी बात सही है की शेर अकेले में तुकबंदी की ज़रुरत नहीं होती… अगर एक शेर कहा जाए… पर जिगर मुरादाबादी का जो शेर आपने दिया वो उनकी बहुत मशहूर ग़ज़ल का एक शेर है… जिसका मतला है… “इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है….सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है”
तहे दिल से शुक्रिया ……………… शर्मा जी, सच में आप गुणीजनों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
Hello sir! Its very beautiful thanks for sharing with us
Thank you very much for appreciation………………… Vikas Jee.