शिक्षा अब व्यवसाय का, पकड़ाऐसा रूपजैसे नीर विहीन अब, सूख रहे सब कूप।करती है गुमराह अब, नैतिकता की बातकूटनीति की चाल भी , कर देती है घात।दल बदलू नेता बने, पलड़ा भारी देखउल्लू सीधा कर रहे,बनके चिल्ली शेख ।कम – ज्यदा की चाह में, उलझे ऐसे लोगमन में लालच भर लिये, लगी बुरी ये रोग।सोने की लंका जली, और जला गुमानइससे रावण डर गया, रहा कहाँ अनुमान।सीता राम कपीश के, कर ले मन में जापरोग संकट हटा रहे, मिट जाये सब पाप ।शिक्षक शिष्य के बीच में ,रहा कहाँ अब मेलबढ़ी बीच की दूरियाँ, अजब- गजब है खेल।
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बहुत खूब….ज्यदा को ज्यादा कर लें…..
बहुत अच्छे बिंदु जी
बहुत बढ़िया ………………………………. !
बहुत ही खुबसूरत सर