क्या तुमने कभी देखा है ?
!अपने इर्द-गिर्द सर्द दीवाली को गर्मी में हाँफते हुएटूटे सपनों में सिमटी गरीबी को आँचल ढांपते हुएआतिशबाज़ी की गड़गड़ाहट में छुपे अंर्तद्वंद कोसूने मन में पसरे अंधियारे को, द्वार झांकतें हुए !!
क्या तुमने कभी देखा है ?टकटकी लगाए प्यासी आँखों को ताकतें हुएअँधेरे में छुपी अपनी परछाई को नापतें हुएकिसी अपने की बाट जोहते हुए सन्नाटे कोह्रदय द्वार चीरकर धैर्य सीमा लांघतें हुए !!
क्या तुमने कभी देखा है ?दीपक की चकाचौंध में खुद को खोते हुएहसँते हुए लबों संग अंतर्मन को रोते हुएअंधे धवल सन्नाटे में गूँजते कर्कशनादको निष्ठुर काल के गर्भ में सोते हुए !!
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शायद तुमने देखा है,….. या नहीं…??
!मगर हाँ देखा है, मैंने देखा है !!अर्धनग्न, निर्बल, तंग, भूखें पेट मुस्कुरातें बाल गोपालो में !तन को खुद में समेटती सबला नारी के अधखिले अधरों में !वृद्ध फड़फड़ाती जर्जर अस्थियों की टकटकी लगाए आँखों में !किसी बेबस लाचार इंसान की मन मलीन सिसकती आहों में !!
हाँ देखा है,…. मैंने देखा है…!!रुंआसी आँखों के नजारो में !!बहतें कारे कजरे की धारो में !!अब कुछ कहा नहीं जाता मुझसे ,समझ लो यारो बस तुम इशारो में !!!!!डी के निवातिया
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खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वविकारें
तहदिल शुक्रिया आपका जनाब सलीम रज़ा साहब !
atyant sundar abhivyakti srimaan.
तहदिल शुक्रिया आपका अम्बिकेश जी
सही कहा आपने…. देखते तो सभी हैं पर दिल में भाव किसी के ही जागृत होते हैं….. देख कर अनदेखा करना अब आम हो गया है….इंसानियत…प्यार…बीती बातें हो रही हैं…. आपकी कलम से मुखरित होते भाव बहुत उम्दा हैं…..अनुस्वार चेक कर लें….कहीं लग गए…कहीं रह गए….हाहाहाहा….अंत में “बीएस” मुझे लगता “बस” होगा…टंकण गलती है…पहले चकरा गया की कौन सा abbreviation है…हाहाहाहा.
तहदिल शुक्रिया आपका बब्बू जी ……………अवश्य आपकी पारखी नज़र के हम मुरीद है ……!
अच्छी सृजन श्री मान जी
तहदिल शुक्रिया आपका बिंदु जी
तहदिल शुक्रिया आपका बब्बू जी ……………अवश्य आपकी पारखी नज़र के हम मुरीद है ……!
Bade dil ko choose wali tasveer khechi hai , Nivatiyan JI .bahut khoob
तहदिल शुक्रिया आपका KIRAN जी
बधाई आदरणीय डी के नेवातिया जी सुन्दर रचना
तहदिल शुक्रिया आपका sukhmangal singh जी
Badi dil ko chone wali tasveer khechi hai , Nivatiyan JI .bahut khoob
तहदिल शुक्रिया आपका KIRAN जी