सरहदी मधुशालामधुशाला छंद (रुबाई)रख नापाक इरादे उसने, सरहद करदी मधुशाला।रोज करे वो टुच्ची हरकत, नफरत की पी कर हाला।उठो देश के मतवालों तुम, काली बन खप्पर लेके।भर भर पीओ रौद्र रूप में, अरि के शोणित का प्याला।।झूठी ओढ़ शराफत को जब, वह बना शराफतवाला।उजले तन वालों से मिलकर, करने लगा कर्म काला।सुप्त सिंह सा जाग पड़ा तब, वीर सिपाही भारत का।देश प्रेम की छक कर मदिरा, पी कर जो था मतवाला।।जो अभिन्न है भाग देश का, दबा शत्रु ने रख डाला।नाच रही दहशतगर्दों की, अभी जहाँ साकीबाला।नहीं चैन से बैठेंगे हम, जब तक ना वापस लेंगे।दिल में पैदा सदा रखेंगे, अपने हक की यह ज्वाला।।सरहद पे जो वीर डटे हैं, गला शुष्क चाहें हाला।दुश्मन के सीने से कब वे, भर पाएँ खाली प्याला।सदा पीठ पर वार करे वो, छाती लक्ष्य हमारा है।पक के अब नासूर गया बन, वर्षों का जो था छाला।।गोली, बम्बों की धुन पर नित, जहाँ थिरकती है हाला।जहाँ चले आतंकवाद का, झूम झूम करके प्याला।नहीं रहेगी फिर वो सरहद, मंजर नहीं रहेगा वो।प्रण करते हम भारतवाशी, नहीं रहे वो मधुशाला।।बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकिया
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बहुत ख़ूब बधाई स्वविकारें
उम्दा…मजा आ गया…अंत में भारतवासी कर लें भारतवाशी की जगह….
आपको पढ़ने का सौभाग्य मिला!
आपका आभार!
उम्दा ख्याल आपका ………………..बच्चन साहब की मधुशाला कालजयी कृति है जितना पढ़ो मन नहीं भरता आपने …इस ले पर लिखकर उनकी याद ताज़ा करा दी !