भिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।भूखा बिलकुल शांतकभी उठता कभी गिरता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।घर बार नहीं मेरायहाँ वहाँ भटकता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।हर बार ही ठोकर खाता हूँकभी खाली कभी कुछ पाता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।हर मौसम का मारा हूँगिड़गिडा़ता पैर पर गिरता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।मांग कर ही तो खाता हूँदिन रात सिसकता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।दुनिया में ना मेरा कोईरिश्ता हर पल करता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।दया धर्म अब कौन है करतानित दिन ऐसे जलता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।ताकत नहीं लड़ने का हममेहर बार ही फिसलता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।जितना मिलता उससे ज्यादाहर बार दुआएं करता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।
पेट पीठ में सट है जाताउम्र बीस में झुकता हूँभिक्षुक हूँमारा मारा फिरता हूँ।
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बहुत ही सुन्दर सर
BAHUT BAHUT SUKRITYA BHAWNA JEE.
सुंदर…..वर्तनी दोष को सही कर लें….कहीं कहीं….
BAHUT BAHUT AAVHAR AAP KA MERI KAVITA KO GAHARAI SE DEKHTE AUR GUIDE KARTE HAI .. TO HAME BAHUT KHUSHI HOTI HAI. DHANYABAD