तेरी कुर्बत में हम भी ख्वाब सजाये बैठे हैंवस्ल ए निगाह में छुपकर दाव लगाये बैठै हैं।
भरोसा होता नहीं क्यूँ मुझे फिर से दिल लगानाएक असरे से मन में घेराव लगाये बैठे हैं।शरारत ना जाने कब शराफत लेकर आयेगीजिगर में दुखते जख्मों का स्त्राव लगाये बैठे हैं।अंगुलियों पे इस तरह कब तलक दिन गीनेंगे हममन के अरमान में इक तनाव लगाये बैठे हैं।रूबरू होते रहे तेरी नजरों में कई बारजिंदगी में किस्मत की हिसाब लगाये बैठे हैं।कुर्बत – समीपता, वस्ल – संयोग,
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बिंदुजी….बहुत खूबसूरत भाव हैं आपके…..आप उर्दू/फ़ारसी के लफ्ज़ इस्तेमाल चेक कर लें…. मुक़र्रर… आब जिस अंदाज़ में लिए हैं आपने मुझे लगता सही नहीं है…. मुक़र्रर निश्चित…तय होता ज़रूर है…पर इसका प्रयोग ऐसे नहीं होता…. इसका प्रयोग निश्चित तारीख…पैसे… या ब्यान से होता है…जिसमें समाज से भी सरोकार होता है….आब वस्तुतः शराब को नहीं कहते…. पवित्र जल को कहते हैं….अगर पुलिंग में लेते हैं…स्त्रीलिंग में आत्मा या परमात्मा का नूर के लिए प्रयोग करते हैं…. शराब खुमारी यह सूफियाना अंदाज़ के लफ्ज़ हैं…. और एक ‘जिगर ए जख्मों’ ए का उपयोग भी कुछ ही उर्दू फ़ारसी के शब्दों में होता है…इसे ‘इज़फ़ात’ कहते हैं…. कहाँ कहाँ होता है पूरी जानकारी मुझे नहीं है…. हाँ ‘ज़ख्म-ए-जिगर’ होता है…. जिगर-ए-ज़ख्म नहीं…. आशा है अन्यथा न लेंगे आप….
आपके मार्ग दर्शन का मैं कद्र करता हूँ। मैंने सुधार किये हैं एक नजर जरूर करें। धन्यवाद।
बिंदुजी….तहदिल आभार आप का…मुझे मान देने के लिए…..बेहतर है पहले से ….निगाह-ए-वस्ल कर लें दूसरी पंक्ति में…..
Sri man jee mere khyal se ab thik hai kyonki hamne bahut sabd badal dale. bahut bahut dhanyabad
अति सुंदर बिंदु जी……………………..जहा तक मैंने जाना है ….आब का अर्थ जल या पानी के साथ शराब से भी लिया जाता है, निर्भर करता है की प्रयोग कहा किस अवस्था में किया जा रहा है ……………और अधिक जानकारी हो आप दोनों के आपस तो अवश्य साझा करे …हम भी अनुग्रहित होना चाहते है ……..!
ऐसे ऐसे फारसी आैर उर्दू के अल्फाजों की करते हैं बौछारें
लगता है बिन्दू जी पूरी की पूरी किताब लिए बैठे हैं
बहुत बहुत धन्यवाद रामगोपाल जी
निवतिया जी मैंने शब्द ही बदल दिए। आप फिर से गौर करें। धन्यवाद
बिन्दु जी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करे,
आपकी ग़ज़ल कौन सी बहर में हैं समझ नहीं पाया क्यूंकि सारे मिसरे अलग अलग वज़न में है…
तीसरे शेर मे तो आप क़ाफ़िया को भी भूल गई हैं…..
ग़ज़ल पर दोबारा बिचार करें…
SALIM JEE EK NAJAR AUR GAUR KAREN .
Ati sundar ,,,, indeshwar ji
bahut bahut dhanyavad kiran jee.