मैं तेरे बिन अधूरी हूँ तू मेरे बिन अधूरा हैचैन हर रूप से तेरे मुझे मिलता जो पूरा हैबन के बेटी मैं जिस घड़ी घर पे तेरे आईतेरे नैनॊं की ज्योति बन गई और मुस्काईभाई के रूप में तूने मेरी रक्षा करी हरदम मेरा प्रेम तुझसे वीर मेरे हो कभी ना कमपति बन के तूने मेरे पर सब कुछ लुटाया हैमेरी सांस चलने तक तेरा हटता ना साया हैपुत्र के रूप में तू जब मेरे आँचल में सोता है मैं तेरे बिन नहीं कुछ भी पुरुष एहसास होता है शिशिर मधुकर
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उम्दा भाव….. पर पहली पंक्ति दूसरी से मिलती नहीं इस नज़्म में…. पहली पंक्ति दोनों की बात कर रही है….दूसरी अकेले नारी की….
मैं तेरे बिन अधूरी हूँ तू मेरे बिन अधूरा है
चैन हर रूप से तेरे मुझे मिलता जो पूरा है
Dhanyavaad Babbu Ji, lekin sabhi panktiyon me naari hi samvaad kar rahi hai. Akshat rachnaae purush dwaara naari ko samarpit hoti hain. Yah rachnaa naari dwaara purush ko samarpit hai.