सब याद है ज़रा ज़रा चाँदनी रातों का बीती बातों का महकती हवाओं का चहकती फ़िज़ाओं का भूली बिसरी यादों काकुछ कही अनकही बातों कासब याद है ज़रा ज़रा हार श्रृंगार के फूलों का खिलना मालती और कामनी का महकनाबढ़ते हुए क़दमों का ठिठकना कभी रुकना कभी चलनाकभी इतराना कभी मुस्कुराना मदहोशी से भरा समाँसब याद है ज़रा ज़रा गुमसुम मुस्कुराती चाँदनी मँद २ हवा में झूमती हर कली चलते २ कानों में कुछ कह जाती इक नक़्शा सा खींच जाती जैसे समाँ सा बाँध जाती हर याद है सताती वो तारों की छाँव और महकती हवा सब याद है ज़रा ज़रा नहीं काफ़ी चँद शब्दों में समेटना उन यादों को दिल में सहेजना चली आती हैं वो जाने अनजाने लौटा लाती हैं वो बीते ज़माने धुँधली ही सही पर सब याद है ज़रा ज़रा सब याद है ज़रा ज़रा
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Waah ….Behad sundar Kiran Ji. Aapne man ki sthithi kaa bada badhiya chitran kiya hai …………..
Shishir JI sarahna ke liye bahut 2 dhanyawad
bahut khubsurat kiran jee…… kya kahane..
Bindeshwar I JI kavita aapko achhi lagi Jaan kar anand hua thanks
वाह्ह….भावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है….आदरणीया….श्बदों को शब्दों कर लें…..
Thanks Sharma JI galati Batane ke liye shukriya
बहन जी आपकी कविता हमें बहुत अच्छी लगी
ऐसे ही पोस्ट करते हो
बहुत अच्छी प्रेरणा मिलती है आपके वाक्य से आपका आभार
राम किशोर जी धन्यावाद , सराहना के लिए आभारी हूँ