दर्द ए दिल अगर तुझको कहीं कोई हुआ होताहवाओं ने मुझे फिर तो यहाँ आ के छुआ होताअगर सब जान लेते अपनी तो बस हार होनी हैकोई पासे नहीं चलता और ना कोई जुआ होतामुकद्दर रूठ बैठा पर कभी कुछ तो मिला होताअगर दिल से कहीं मुझको कोई देता दुआ होतासभी उम्मीदें टूटी हैं फ़सल तो मर गई कब की काश शुरुआत में ही बीज वो उन्नत बुआ होताअकेले पड़ गए मधुकर मगर ना हार मानी हैकाश लम्बे समर में मेरा भी एक पहरुआ होताशिशिर मधुकर
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बेहद उम्दा…बेहतरीन…..मधुकरजी…. आपका शेर है ….
मुकद्दर रूठ बैठा पर कभी कुछ तो मिला होता
अगर दिल से कहीं मुझको कोई देता दुआ होता
पहले मिसरे को ऐसे सोच कर देखिये….”बेशक मुकद्दर था रूठा पर कुछ तो मिला होता” क्या फरक कुछ पड़ता दूसरे मिसरे पर…
Tahe dil se shukriya Babbu ji. Yadi aapke sujhaav ke anusaar sher ko nimnvat likhaa je to kaisaa hai :
मुकद्दर बेशक खफा था पर कभी कुछ तो मिला होता
अगर दिल से कहीं मुझको कोई देता दुआ होता
ji…..bahut badhiya…..jai ho….
Dhanyavaad ……………..