मोहब्बत का मारामोहब्बत को तेरी हमने नकारा नहीपर तेरी बेरूखी भी हमें गवारा नहीं सुबह शाम किया है बस तुझे सजदा फिर भी लब से नाम तेरा पुकारा नहीं हजारों तूफान उठते हैं इस दिल में फिर भी कभी लिया कोई सहारा नहींलाखों दीवाने हैं तेरे इस हुस्न के पर आशिक मुझ सा कोई प्यारा नहीं ये तो दिल है जो पागल है तेरी मोहब्बत में वरना सर्वजीत तेरी मोहब्बत का मारा नहींसर्वजीत सिंह[email protected]
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Bahut khub Sarvjeet ji
बहुत बहुत धन्यवाद …………… राजीव जी।
सर्वजीत जी….स्वागत आपका….बेहद ही खूबसूरत ग़ज़ल के साथ एंट्री….हाहाहा….
तहे दिल से आपका आभार शर्मा जी……………. बहुत बहुत धन्यवाद।