(जनाब मिर्जा ग़ालिब साहिब की एक ग़ज़ल है….”कोई उम्मीद बर नहीं आती…कोई सूरत नज़र नहीं आती”…. इसी ज़मीन में कोशिश की है मैंने ग़ज़ल लिखने की…. आपकी नज़र…)उसकी कोई खबर नहीं आती…हिचकी भी अब मगर नहीं आती…हाल क्या रेगज़ार आँख कहूँ…हो फुगाँ दर्द, भर नहीं आती….मर के जीना नसीब होता याँ (यहां)…इश्क़ मेरे सहर नहीं आती….यह वफ़ा-ओ-जुनूँ भरी चाहत…है इधर पर उधर नहीं आती….खूं के रिश्तो सुकून से रहना…जान वापिस ‘चँदर’ नहीं आती….पढ़ के ‘ग़ालिब’ सुख़न वो कहते हैं…’गालिबाना’ बहर नहीं आती….’कोई उम्मीद बर नहीं आती….कोई सूरत नज़र नहीं आती’…..\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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लाजवाब …………….. शर्मा जी।
तहदिल आभार आपका….sarvajit singhji…..
kya baat hai sharma sahab, lajawaab
तहदिल आभार आपका….Rajeevji…..