( श्री नक्श लायलपुरी जी की ग़ज़ल….. यह मुलाक़ात इक बहाना है….प्यार का सिलसिला पुराना है… की ज़मीन में लिखी ग़ज़ल)तेरा अंदाज़ कातिलाना है….लूट कर चैन मुस्कुराना है…धूप खिलना बहुत ज़रूरी है…रिसते घर को अगर बचाना है….मौत आई न ही खबर उसकी…हर तगाफुल मुझे सताना है…शाख से फूल तोडना, अपनी…नीच फितरत को ही दिखाना है…आँख से आँख लड़ गयी तो फिर….जून का माह भी सुहाना है…..है जुनूँ इश्क़ सर पे चढ़ता जब…फिर ज़माना खुदा बेगाना है…है नज़ाकत से हुस्न फूल खिले….खूं जिगर से महक जगाना है…..बात ‘चन्दर’ वफ़ा नहीं अब तो…इश्क़ पीना ज़ह्र पिलाना है…\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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bahut khubsurat kaya baat hai…….
तहदिल आभार आपका….बिंदुजी…..