दूरियां मुझको अब तुम जताने लगे होअपना संग वो अनोखा भुलाने लगे होतड़प कोई मिलने की दिखती नहीं अब खुद को महफिल से मेरी बचाने लगे होइस जहाँ में मुहब्बत ना तुम पाप समझोफिर ये अंखियां क्यों मुझसे चुराने लगे होकभी पल हिज्र का था ना तुमको गवारा अब पूरा बरस कैसे तन्हा बिताने लगे होये निशान ए मुहब्बत ना छूटेंगे हरगिज़ तुम मधुकर क्यों इनको मिटाने लगे हो शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया सर…
Dhanyavaad Bindu Ji ……..
कभी पल हिज्र का था ना तुमको गवारा
अब पूरा बरस कैसे तन्हा बिताने लगे हो
Bhaut Khuoob, Shishir jI
Tahe dil se shukriya Rinki ……….
क़यामत टूट पड़ती है ज़रा से होंठ हिलने पर,
ना जाने हश्र क्या होगा अगर ये मुस्कुराये तो।
बहुत खूबसूरत……..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji …