अमृतसर में उजडा दशहरे का मेला कैसा ये खेल देखो कुदरत नें खेलानज़र सावधानी से थोड़ी जो हट गई रेल कीं पटरी फिर लाशों से पट गईदेखी जो घटना हुआ दुख है भारीपर क्या तय होगी कोई जिम्मेदारीमंजर जो ऐसा कभी फिर ना आएखुशियों को पल में जो मातम बनाए ज़रा सोचो दुर्घटना जहाँ ये घटी थी रेल कीं पटरी वहाँ एकदम सटी थीकिसने वहाँ फिर लगने दिया मेलाजो मौत के तांडव को लोगों नें झेलाइन झूठी जांचों से कुछ भी ना होगा जनता नें फिर लापरवाही को भोगाअगर हम सुरक्षा को अब भी ना चेते यूँ ही जानें अपनी रहेंगे फिर तो देतेशिशिर मधुकरi
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मार्मिक…दुखभरी घटना है…. पर सबसे पहले दोष हमारा है की हम अपनी खुद की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करते हैं….रेल ट्रैक गाडी के लिए है… सब लोकल लोग थे और उनको पता था की ट्रैन का भी टाइम है… फिर भी ट्रैक पर थे… जो ग्राउंड से ऊंचा है…. मेरे एक दोस्त हैं वह रहते जिन को फ़ोन पर मैंने बात की… वहाँ दीवार भी है… हम सारा दोष सरकार या दूसरों पर डाल कर अपनी जिम्मेवारी से बचते हैं….दोष प्रशासन का सिक्योरिटी का भी है…पर भीड़ किस की सुनती है तब…. आप को एक इंस्टैंस बताता हूँ मेरे सामने एक आदमी अपनी बेटी के साथ बंद फाटक के नीचे से निकल रहा था मैंने बोला की ट्रैन का टाइम है रुक जाओ पर वो नहीं माना….उधर से ट्रैन भी आ गयी…गनीमत है वो साफ़ निकल गया…अगर ट्रैक में उसका या बच्ची का पाँव फंस जाते है वैसे घबराहट में गिर जाता तो कुछ भी हो सकता था….
Aapne sahi kaha Babbu ji ……………….
doshiyo ko unki jimmedari ka ahsas karati tikhi tippni. Sach bahut hi bura hua amritsar me.
Sahi kaha Rajeev Ji . Ham kavi log apni samvednaaon ko kam see kam shabd to de paaten hain.