मुहब्बत जिस को होती है वो तो नज़दीक आता है खुद की हस्ती को साथी के लिए जड़ से मिटाता हैजो रिश्ता निभाता है फ़कत एक आस के कारण मिले ना उसको जो मन का तो वो नीचा दिखाता हैसभी कुछ पास है फिर भी अधूरापन सा लगता हैअकेलापन मुझको इस भीड़ में अब भी सताता हैउम्र गुजरी है ये सारी मिला ना वो मगर अब तक जो अपना चेहरा छुपा के मेरे लिए आँसू बहाता हैबड़ा जालिम ज़माना है यकीं अब तो नहीँ होता वो मधुकर साथियां को अपनी पलकों पे बिठाता है शिशिर मधुकर
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आपकी गजलों का जवाब नहीं शिशिर जी…..
Take Dili se shukriya Madhu Ji …..
very nice
Thanks Nivatiya Ji ……..
ati sundar……………..
Shukriya Babbu Ji ………………….