मन की बात खुलकर के जहाँ पे कह नहीं सकतेऐसे हालातों में इंसान कभी खुश रह नहीं सकतेतेरे नज़दीक आते हैं तो फ़कत रुसवा ही होते हैं सितम अपने परायों के और हम सह नहीं सकतेतंग है सोच जिस घर में वहाँ रहना ना आसां हैझील में कैसे भी चाहो ये तिनके बह नही सकतेटूटने की भी सीमा है तुम भी सच जानते हो येज़मीं पर आ चुके हैं हम और तो ढह नहीं सकतेये सच है दूरियां मधुकर तुम्हें हर पल रूलाती हैंहम भी मज़बूर है लेकिन बता वजह नहीं सकतेशिशिर मधुकर
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Ati sunder Rachna kya likha hai aapne “टूटने की भी सीमा है तुम भी सच जानते हो ये
ज़मीं पर आ चुके हैं हम और तो ढह नहीं सकते” dil ko chuti ek aur dard ko bayan karti Rachna.
Tahe dil se shukriya Rajeev Ji ………………..