कोई तो बताये वो कैसे यहाँ आया थामेरा मुकद्दर सहसा बदलने यहाँ आया था।कितना खामोश, तन्हा, उदास दिख रहा है वोना मालूम किस-किससे मिलके यहाँ आया था।कितना अजीब चिराग है बुझाये बुझता नहींवो किस अँधेरे से गुजरके यहाँ आया था।इस राह की धूल पावों को जलाने लगी हैकिसका दहकता जिगर टहलने यहाँ आया था।मेरी ही आवाज का झोंका मुझे रुला गया हैना जाने किस दर्द को छूके यहाँ आया था।…. भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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सुन्दर भूपेंद्र भाई ..
Many thanks for your good words,
बहुत सुंदर भाव……….